Saturday 20 October 2012

बड़ी उदासी थी कल मन में......


डॉज्योत्स्ना शर्मा
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।

रीति कौन बताये मुझको
संध्या गीत सुनाये मुझको
कौन पर्व है ,कौन तिथि पर
इतना याद दिलाये मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाई वे से जोड़ दिया

बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।


दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली भी कुछ बेरंगी थी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया

बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
 

राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
'अन्तर्जाल 'ने तोड़ दिया

बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
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6 comments:

  1. टीस देते वर्तमान को स्मृतियों में बसे अतीत के परिप्रेक्ष्य में परखने का प्रयास करता प्यारा गीत !!!!!

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    1. मेरे भावों से समरस प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार ...ashwini kumar vishnu ji
      सादर ...ज्योत्स्ना शर्मा

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  2. बड़ी उदासी थी मन में-----मन के भीतर उपजती पीड़ा को दर्शाती रचना
    बहुत बहुत बधाई

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  3. मेरी भावनाओं को आपका स्नेहाशीष मिला ..ह्रदय से आभार आपका ...!!
    सादर ...ज्योत्स्ना शर्मा

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  4. Replies
    1. बहुत बहुत आभार सरिता भाटिया जी |
      सादर
      ज्योत्स्ना

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